कहानी
शीर्षक_बुढ़ापे की सनक

 

रात के ग्यारह बज रहे थे पर रोज की तरह आज भी किशन जी की आंखों से तो नींद मानो कोसों दूर थी ! कभी घड़ी की तरफ देखते तो कभी दरवाजे की तरफ ! फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि वो जानते थे फोन करते ही उनकी चिन्ता की परवाह किये बिना रोहित उनका बेटा उन्हें दो बातें सुना देगा ! बैचेनी से वो घर के बरामदे में इधर से उधर टहल रहे थे!  जब घड़ी ने बारह बजने का संकेत दिया तो बैचेनी इतनी बढ़ गयी कि बिना बेटे की कड़वी बातों की परवाह किये उन्होंने फोन लगा ही दिया ! दस पन्द्रह बार रिंग बजने के बाद रोहित ने फोन उठाया और हुआ भी वहीं जिसका उन्हें डर था !

 

 लगभग एक बजे शराब के नशे में रोहित जब घर आया तो घंटी की आवाज़ सुन किशन जी ने दरवाजा खोला तो बिना ये पूछे कि "पापा आपने खाया या नहीं" उनपर बरस पड़ा "पापा आपको बुढ़ापे की सनक चढ़ गयी है" तभी मेरे लिए जगे रहते हो और फोन कर करके मुझे परेशान करते रहते हो "अरे मैं बच्चा नहीं रहा बड़ा हो गया हूँ" आप समझते क्यों नहीं "मेरे दोस्त हंसते है मुझपर जब भी आप फोन करते हो"  ! बोल कर नशे में झूमता रोहित तो चला गया पर किशन जी जो अब तक बेटे के लिए भूखे थे उनकी भूख ही मर गयी थी बेटे की कड़वी बातों से और उसकी हालत देख ! वैसे तो ये रोज की ही कहानी थी पत्नी के गुजरने के बाद वो और रोहित ही तो थे घर में पर ! रोहित के भविष्य की चिंता उन्हें खाये जा रही थी ! गलत संगत की वजह से उसके रूखे व्यवहार और उसकी आवारागर्दी उन्हें रोज ही मौत की तरफ ढकेल रही थी !

 

खाने को प्रणाम कर वो भूखे ही कमरे में चले गये ! झांक कर देखा रोहित बेसुध सोया था अपने कमरे में  ! रोहित से पत्नी के गुजरने के बाद एक दो बार उसकी संगत और बुरी आदतों को लेकर सख्ती की थी उन्होंने पर उसके मरने की और घर छोड़ने की धमकी से वो डर गये थे क्योंकि अब उसके अलावा उनका और कोई था भी तो नहीं  ! वैसे भी आज रोहित की हालत के जिम्मेदार वो खुद थे क्योंकि उन्होंने उसकी हर जिद हर इच्छा को पूरी कर अभावों और कष्टों से सदैव दूर रखा था ! जिसका नतीजा था कि आज रोहित न उनकी भावनाओं को नहीं समझ रहा था न ही भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को ! उसकी हर जिद पूरी करने पर जब पत्नी कुछ बोलती तो वो उसे झिड़क देते ! आज फिर से बिती बातें याद कर  बिस्तर पर लेटे_लेटे अपने बहते आंसुओं को पोंछ वो सोचने लगे कि काश वो समझा पाते बेटे को जिसे वो बुढ़ापे की सनक कहता है वो एक पिता की चिन्ता है जिसे शायद वो तभी समझ पायेगा जब वो खुद पिता बनेगा पर वो ये भी जानते थे वो क्या कोई भी अब रोहित को समझा नहीं सकता क्योंकि उसे पैसे की और सुविधाओं की लत पड़ चुकी थी ! उसके सुधरने की अब बस उन्हें एक ही उम्मीद नजर आ रही थी वो थी उसे पूरी तरह से अभावग्रस्त कर देना  इसलिए उन्होंने अपना सब कुछ अनाथालय में दान देने का निश्चय कर लिया ताकि रोहित जीवन के कष्टों को समझ पाये भले उनको गलत समझे पूरी उम्र !  सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल)                                                  [रूबी प्रसाद ]