पसरला ! मालम ह आज हमारो शादो को सालगिरह ह। मालम ह , अच्छी तरह मालम ह । परा एक साल हो गयाऔर तम्ह कोइ खशो नहीं? खशो! किस चोज को खशो। शादो को सालगिरह को और किसको ? हा , सरला न उसास भरो' म तम्ह कोइ भट दना चाहता है। कोइ नायाब तोहफा पति न मनहार को । तम्हो बताओं अपन पसद को कोइ चोज । जिस लाकर म तम्हार कदमा म डाल द् । पति का गर्वान्नत स्वर कमर म गज उठा। सरला सोच में पड गई । पर डढ साल का हो गया होगा वहा' पत्रो को चप्पो दख पति न करदा - तम यकायक उदास क्यों हो गई? क्य सोचन लगो ? दिल म कछ हो तो बखटक कहो। पति को होसला अफजाइ स पत्रो कसमसाइ ओर आखिकर हिम्मत कर बोलो वह - जो मझ चाहिए क्या तम उस लाकर द सकोग? पनो का पत्थर सा चहरा भकप क झटक को आशका स कसमसाया । चहरा भकप क झटक को आशका स कसमसाया । पिय! एक बार कहकर तो दखो । पति चहका। तो फिर ला दो मर डढ साल क बच्च को जो तम्हारो पहचान क बगर शहरो अनाथालय म पल रहा ह । मरो कवारो कोख का बच्चा। प्लोज ---- महश--- प्लोज----पति उसका मह ताकता रह गया और पत्रो क बोच गहरा सन्नाटा पसर गया । -होरालाल नागर भोपाल
सालगिरह को भट