1लौट जब वनवास से, लखन सहित सियराम। दीपों से जगमग हआ, परी अयोध्या धाम।।
2राम लखन सीता सहित, पहँच नगर समीप। अवधपरी में जल उठ, घर-घर घत के दीप।।
3खशियां लेकर आ गया, दीपों का त्यौहार। जगमग जगमग हो गया, नगर गाम घर द्वार।।
4पर्व दिवाली आ गया, लेकर शभ पकाश। जल दीप से दीप हो, अंधकार का नाश।।
5कोई दीपक घत भरा, और किसी में तेल। इसको मार्न कर्मफल, या किस्मत का खेल ।।
6श्रेय दीप को ही मिले, जलते बाती तेल। होती है तब रौशनी, जब हो श्रेय दीप को ही मिले, जलते बाती तेल। होती है तब रौशनी, जब हो उनका मेल
7सबको ही शभ लाभ दे, यह पकाश का पर्व। सभी सखी सम्पन्न हों, सर नर मनि गंधर्व।।
8दीपक जसे हों अगर,सबक चाल चरित्र। तो इस धरती पर बने, स्वर्ग सरीखा चित्र।।
9कपा करें मां लक्ष्मी, भरे रह भण्डार। सबको सख समद्धि दे, दीपोत्सव इस बार।।