उडानबाको ह

क्टर साहब पसठ साल म सवा निवत्त हो गय। अच्छा पसा मिला। बट-बह को स्थापित कर दिया ह। रहन को मकान, घमन को कार सब सविधा हो गयो। अब कोइ चिता नहीं रहो। यह क्या! सवा निवत्ति क बाद पहला सप्ताह- सबह जल्दो उठन क बजाय सात, आठ ओर दोपहर एक बज तक हो गया। नहाए न नहाए क्या फक पडता ह इसी सोच क चलत स्नान भी तोन दिन स नहीं हआ। आलसोपन क रहत दोपहर का खाना शाम को हआयह क्या हो रहा ह! सोचा सब हो जाएगा पर निश्चितता कहां जडता न बन जाय


बस ! बहत हआ,आठव दिन सबह तन- मन को एक झटका दिया। रात म जो निश्चय किया था वह शरू किया। स्वय क शरीर क बार म सोचन क अलावा परिवार, समाज, मरोज, बागवानो, लखन ओर मोटोवशन जस न जान कितन अनगिनत विषय काम करन क लिए मिलत गय। डाक्टर साहब अब दबारा सबह जल्दी उठकर पहल स ज्यादा व्यस्त ओर खश रहन लग ह। मन ह कि उडान भरन लगा ह अभी तो तनावमक्त जोवन को असलो उडान बाको ह। पहल स ज्यादा व्यस्त ओर खश रहन लग ह। मन ह कि जिसका अत नहीं ह। अभी तो तनावमक्त जोवन को असलो उडान बाको ह।